MERE APNE HAIN SAB

दिलों के रिश्ते ख़ून के रिश्तों से भी होते हैं मज़बूत।
कानूनी कागज़ पे लिख के वो नहीं हैं मांगते सबूत।

वैसे सब रिश्ते इन्सान ने खुद बा खुद बनाए हैं,
उनकी बुनियाद क्या है कहां से वो होके आए हैैं?

प्यार से ऊंचा कोई किसी का हो नहीं सकता,
इस बन्धन में कोई किसी को खो नहीं सकता।

न तो शक न बदगुमानी मंडराते हैं इस के करीब,
न यह पूछता है कौन अमीर है और कौन है गरीब।

हमने देखी है भाई भाई, शोहर बीवी, बाप बच्चों में दुश्मनी,
लेकिन दिलों के रिश्तों में ऐसी कभी कहीं नहीं सुनी।

इन्सान का इन्सान से दिलों का रिश्ता होना चाहिए,
सारे ये फूल हैं इन्हें इक धागे में पिरोना चाहिए।

शुभ प्रभात

JAAYEN TO JAAYEN KAHAN?

कभी सोचता हूं और कितने इम्तिहान बाकी हैं,
आशियाने जल चुके हैं फक़त सुनसान बाकी हैं।

धीरे धीरे कोई न रहा जो दोस्ती का भरते थे दम,
अनजान दुनिया में अब तो अनजान बाकी हैं।

ढूंढते हैं शहर में कोई तो वो जगह होगी,
दिल लुभाने के लिए जहां गुलिस्तान बाकी हैं।

क्या ज़माना था जहां हस हस के लोग मिलते थे,
अब तो यूं लगता है सिर्फ परेशान बाकी हैं।

इंसानियत इन्सानों से ज़िंदा थी, आबाद थी,
अब जहां तक नज़र जाती है हैवान बाकी हैं।

ज़िंदा दिलों की बस्ती में अब झगड़े खत्म नहीं होते,
अमन के लिए तो शायद कब्रिस्तान बाकी हैं।

कैसी हवा चली, रवि, सब कुछ समेट के ले गई,
हमें वो कहते हैं अभी आने को तूफ़ान बाकी हैं।

KHUDA SE PYAR HAI JINKO

तनहाई में कई चेहरे और अफसाने याद आते हैं,
हमारी उदासी में भी वो दिल को लुभाते हैं।

जिन के साथ बिताए थे एक दो पल ही,
वो भी हमें खुशियों का एहसास दिलाते हैं।

फिर खुदा के साथ तो सारी ज़िन्दगी कटी है,
हम उन्हें इतनी आसानी से क्यूं भूल जाते हैं?

गर उनकी इबादत में हम सर झुका लें,
यकीनन गमों के सेहरे बहारों में बदल जाते हैं।

लोग हमें मझदार में छोड़ भी सकते हैं,
खुदा के बंदे हर वक़्त खुदा के ही कहलाते हैं।

रब की पनाह में आसानी से वह सकून मिलता है,
जिसके लिए सभी उंगलियों पे नचाते हैं।

मुहब्बत का सिला लोगों से मिले न मिले, रवि,
सब कुछ मिलता है उन्हें जो खुदा से दिल लगाते हैं।

शुभ प्रभात

SABSE KEEMATI NAZRAANA

कौन कहता है अपने दोस्तों को
बहुत कीमती चीज़ दे सकते हो?
गर वक़्त नहीं दे सके तो सिर्फ
अपनी गफलत के दाग़ भरते हो।

दो पल तो किसी को दे न पाए,
क्या होगा इन नज़रानो से?
दिल बहलाने के ज़रिए बहुत हैं,
पर नहीं बहलता ऐसे बहानो से।

जब बूढ़े हो जाएं मां बाप कभी,
वो तुम्हारे वक़्त के हैं हकदार,
क्या तुम कभी भी न चुकाओगे,
जो ज़िन्दगी भर रहा है उधार?

प्यार की कीमत न लगाना,
आपसे मांगता है छोटी कुर्बानी,
नज़राना दो अपने वक़्त का,
गर कुछ कीमती देने की है ठानी।

शुभ प्रभात।

WO PHIR NAHIN AATE

आवाज़ तक नहीं होती गर टूट जाए प्यार।
पर सुनी नहीं जाती सदा गर टूटे ऐतबार।

बहुत ऐसी चीजें हैं जो जुड़ जाती हैं टूट के,
पर ऐतबार की रह जाती है ज़िन्दगी भर दरार।

ज़िन्दगी भर निभाइए वादा वफादारी से,
वैसे ज़िन्दगी पर किसी का है नहीं इख्तियार।

अपने सदाकत की कभी बोली ना लगवाइए,
एक बार खो दी, मिलती नहीं फ़िर बार बार।

लाइक ए ऐतमाद बनने में लग जाती है उम्र,
पर एक पल में आप बन सकते हो नाकाबिल ए ऐतबार।

यही एक बन्धन है, तोड़ना है बहुत आसान,
पर धीरे धीरे आप होंगें ज़िन्दगी से बेज़ार।

नहीं आते वह पल दोबारा जो फरेब में गंवा दिए,
बन सकते थे साहोकार पर बन बैठे अब कर्ज़दार।

दोस्ती है कायम, रवि, वफादारी के सतून पर,
धोका गर दिया है तो है दुश्मनी का इज़हार।

शुभ प्रभात।

ASHA

मैं हूं आपकी आशा,
हर दम आपके संग रहती हूं।
मुझे आपसे कुछ न चाहिए।
पर ज़रा सोचिए
आपको मुझ से क्या उम्मीदें हैं।
सबसे बड़ी यह है कि,
मैं कभी भी
किसी हालत में,
आपको न छोडूंगी।
२४ घंटे, ३६५ दिन,
मैं आपकी सेवा में लगन रहूंगी।
यकीनन, जब सब आपको
छोड़ दें या नज़र अंदाज़ करें,
मैं नहीं छोडूंगी आपका दामन।
आपकी अंधेरी रातों में
मैं चांद बनके
आपके हालात संवारूंगी।
मैं हूं आपकी रौशनी की किरण,
आपके अकेलेपन का हल,
आपकी मायूसी की आस।
आपकी ज़िन्दगी,
आपकी जान।

आपकी आशा
अगर आपके लिए
इतनी ज़रूरी है
जैसे सांस;
तो क्यूं न आप
दूसरों की आशा
को भी उनके पास
ही रहने दें?
आपकी तरह वह भी,
अपनी आशा के बग़ैर,
नहीं जी सकते।
जब तक है आस,
ज़िन्दगी है पास।
वह आंखों से हुई बोझल,
जीना है मुश्किल।
कोई किसी को
इतना नहीं चाहता
जितना आशा को।

शुभ प्रभात

PEHLE INSAAN, PHIR MAHAAN

उन्हें रंजिश थी ये सोच के वह महान न बन पाए,
हमें तरस आता है कि वह तो इन्सान ही न बन पाए।

क्या गरज है हमें उनसे इतने बड़े वह बन गए,
पर वह रहम दिल तो न थे और मेहरबान भी न बन पाए।

मकबोलियत के पीछे दौड़ते वह उस मकाम पे हैं अब,
इन्सानियत की धुंधली सी पहचान भी न बन पाए।

एक ख्वाब उनका था, लोग झुक कर करें उन्हें सलाम,
आन तो उन में बहुत थी पर शान वो न बन पाए।

लोगों के दिलों को जीतने का रुतबा बुलंद था,
पर इतने थे यह मगरुर, किसी के दिल का अरमान न बन पाए।

चलो छोड़िए इरादे अज़मत के, हमें नहीं बनना उनकी तरह,
आओ किसी के काम आएं, तो क्या गर जहान न बन पाए।

शुभ प्रभात

SHARAD PURNIMA KI BADHAYI

आज फ़िर चांद अपना जलवा हमें दिखलायेगा,
शरद पूर्णिमा में ठंडी खीर हमें खिल्वाएगा।

उधार ली हुई अज़मत सही पर दिखता तो हसीन है,
आज तो पूरा नूर हमें रात को दिखाएगा।

क्या क्या ख्वाहिशें हैं हमारी चांद पे जा बैठें हम,
यह तो हमारा अपना है, हमें भी अपना बनाएगा।

सबसे बड़ी ख्वाहिश है, कुमारियों को मिले कुमार,
व्रत तोड़ते ही उनकी ख्वाहिश का असर आएगा।

हिन्दुस्तानी होने पे क्यूं कर हमें न फक्र हो,
सदियों से हमारी रिवायत है, कौन किसको बताएगा?

चांद, सूरज और सब सयारे हमारे इतिहास से जुड़े हैं,
हर किसी का त्योहार हिन्दुस्तानी ज़रूर मनाएगा।

राफेल की पूजा के गंदे लतीफे बेशक हमने बनाए,
पर अपनी सकाफत पे नाज़ करना कौन हमें सिखाएगा?

JO BOYA WO PAYA

ये तुम्हें क्या मिला है, क्यूं होती है हैरानी?
जैसी करनी वैसी भरनी, यही है बात पुरानी।

“बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाए”,
फ़िर तुम्हें तुम्हारे फल से इतनी क्यूं है परेशानी?

सबको चकमा दे लोगे, इसका न करो गरूर,
उसके दरबार में दूध का दूध, और होगा पानी का पानी।

खुदा ने बहुत कुछ दिया तुम्हारे हाथ में,
बस यूं कहिए तुमसे ही है तुम्हारी जिंदगानी।

फूल अगर हैं बोए तुमने, कांटे न उग पाएंगे,
बुढ़ापे में वो ही मिलेगा, जो थी तुम्हारी जवानी।

अपने कर्मो की तस्वीर खींच के दिल की एल्बम में रखना,
इन्हीं से बनती जाएगी तुम्हारी अपनी एक कहानी।

शुभ प्रभात।

MAIN KUCHH NAHIN

खुद को अहमियत देने से
खुदा को नहीं समझ सकते,
खुदाई तो इतनी बड़ी है,
तस्सवुर में भी न पहुंच सकते।

खुद को समझना ज़रूरी है,
लेकिन खुद को ना समझें ज़रूरी।
गर ज़माना आपकी अना पे टिका है,
तो यह है आपकी ही मजबूरी।

खुदी को कम करिए,
दूसरों के बारे सोचिए।
खुदाई का जो राज़ है,
अपने दामन में बोचिए।

जब आप समझ जाएंगे,
हर ज़र्रे के साथ जुड़े हैं आप।
फ़िर इसका भी एहसास होगा,
कायनात में अकेले न पड़े हैं आप।

कोई कहीं ऐसा नहीं,
जिसकी आपसे कम एहमियत है,
यही खुदा की पहचान है,
यही खुदाई की असलियत है।

शुभ प्रभात

NEKI KAR DARIYA MEIN DAAL

ज़िन्दगी में आते हैं ऐसे भी मुकाम,
सब ठीक करके भी तूं होता है बदनाम।

बहुत मेहनत से और लगन से किया काम,
न कहीं कोई ईनाम, न कहीं कोई आराम।

एहसान फरामोश हैं सब, नाजायज़ भी,
जिनके लिए दिन रात किए थे हराम।

और फिर कई ऐसे भी दोस्त मिले होंगे,
जिनके बगल में थी छुरी और मूंह में राम राम।

उदास और मायूस हैं तूं, क्या करूं, किधर जायूं,
क्या नेकी और सच्चाई का यही है अंजाम?

तेरी अच्छाइयां न गलत हैं न बर्बाद होंगी,
पर नतीजे के बारे सोचना नहीं है तेरा काम।

नेकी कर दरिया में डाल, अमली मशवरा है,
छोड़ सब खुदा पे और पा ले अपना आराम।

जो जो जिसको मिलना है, मिल के ही रहेगा,
खुदा की कर बंदगी, सब को झुक के सलाम।

लोगों के सकून – ए – रूह की न फ़िक्र कर, रवि,
सिर्फ अपने ही ज़हनी सकून का कर ले तू इंतज़ाम।

शुभ प्रभात

AAYIYE AAP BHI AAZMAYIYE

एक ज़बरदस्त नुस्खा है,
होंगे आप सुन के हैरान।
मरने वाले को भी गर मिले,
आ जाती है उसमें जान।

बिल्कुल मुफ्त मिलता है,
न किसी का कोई नुकसान।
मुश्किल तो बिल्कुल नहीं,
है सब दवा दारू से आसान।

न देने वालों न लेने वालों को,
देना है किसी को लगान।
न ही इसे खरीदने के लिए,
जाना है किसी दुकान।

कोई नहीं इस नुस्खे से,
कभी होगा अनजान।
किसी भी हालत में करेगा काम,
यह है मेरा ऐलान।

जानवर भी आजमाते हैं,
हम तो हैं फकत इन्सान,
इस नुस्खे को खूब बांटो,
और बन जाओ मेहरबान।

गमों के पहाड़ टूट रहे हों,
उम्मीद का न हो अनुमान।
कहीं से रौशनी न मिले,
न ग्रंथ, न बाइबल, पुराण या कुरान।

आखिर में कहूंगा नुस्खे के लिए,
यह है खुशियों का उन्वान।
अक्लमंद इसे पा लेने के लिए,
कर देते हैं सब कुछ कुर्बान।

बता रहा हूं अब मैं आपको,
हो जाएगा आपको भी गुमान:
होंठों पे रखिए इबादत,
चेहरे पे लाइए मुस्कान।

बांटिए इन्हें लोगों में,
बन के शुक्र गुज़ार इन्सान।
हौले हौले सब ठीक होगा,
आपकी मुस्कान, खुदा की पहचान।

शुभ प्रभात।

SAB CHANDRAMUKHI HAIN BECHARE

 

आजकल के सूरजमुखी सूरज नहीं देखा करते,
चांद को देख देख रात को हैं आहें भरते।

ताकतवर होने से क्या फर्क पड़ता है,
हसीन है उसी पर हैं लोग मरते।

कौन ताके सूरज को, ठीक है ज़िन्दगी देता है,
पर चांद न होता, तो हम तुम क्या करते?

ज़िन्दगी ही नहीं, रंग भी सूरज ने दिए हैं,
पर अब सूरजमुखी, चांद के लिए हैं संवरते।

माना मैं भी रवि हूं, सूरज से नाम मिला है,
इसलिए लिख रहा हूं मैं यह डरते डरते।

कई ख्वाब चांद के मेरे भी ज़ख्म बन चुके हैं,
आज फिर से ताज़ा हो गए उभरते उभरते।

KYA BURA HAI, KYA ACHHA HAI?

अच्छाई और बुराई पे कभी कभी इख्तियार नहीं होता,
जिसने हमेशा सब ठीक किया, ऐसा कोई हकदार नहीं होता।

जिसने अपनी ज़मीर से छुपाकर न कुछ किया हो,
गर गलत भी हो जाए वह शर्मसार नहीं होता।

अपनी रूह से पूछना क्या क्या वह लेके आई थी,
सब यहीं मिल जायेगा, क्या जन्मों का उधार नहीं होता?

एक ताज्जुब यह कई बार देखा है हमने,
गुनाह हो जाते हैं पर कोई गुनाहगार नहीं होता।

अपनी ही रूह से करो सवाल, जवाब ज़रूर मिलेगा,
उस जैसा जहां में कोई सलाहकार नहीं होता।

एक तड़प सी है, बेचैनी लगी रहती है हरदम,
पर जो यह राज़ समझ ले वह बेकरार नहीं होता।

यह वह शय है जो अंदर ही पैदा होती है, रवि,
इंसानियत का कहीं कोई बाज़ार नहीं होता।

शुभ प्रभात।

दशहरा मनाते हैं क्यूंकि अच्छाई की जीत बुराई पे हुई थी। किस को अब पता है क्या बुरा है क्या अच्छा है?

DHAI AKSHAR PREM KE

एक सलाह आज देता हूं, ज़रा गौर फरमाइए,
कुछ भी करिए ज़िन्दगी में किसी का दिल ना दुखाइए।

बदलना चाहते हो किसी को? मुमकिन है,
पर गुस्सा, नाकामी, और मायूसी भूल जाइए।

कयादत का सबसे बड़ा उसूल ही एक है,
ढाई अक्षर प्रेम के अपने हुनर में अपनाइए।

मुरझाया फूल हौंसला अफजाई से खिल उठेगा,
फिर आगे क्या होता है, देखते जाइए।

यही नुस्खा दोस्तों से, रिश्तेदारों पे भी आजमाइए,
जो गुस्से से न हो सके, प्यार से पाइए।

कड़वाहट से कभी कुछ अंजाम पे पहुंचा है कभी?
थोड़ी मिठास लाइए, हंसते हुए नतीजा पाइए।

कोई भी मंज़िल मुश्किल या दूर नहीं, रवि,
प्यार की डोर से खींचिए, अपने पास बुलाईए।

शुभ प्रभात।

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