अब तो पाबंदी लग गई है छूने पे और मिलने पे,
पर तुम तो पहले भी रहती थी मुझसे ऐसे ही दूर।
करोना को क्यूं दें हम इल्ज़ाम ए मुहब्बत,
उस से पहले भी हम रहे हैं ऐसे ही मजबूर।
यही लॉकडाउन यही अकेलापन यही तन्हाई थी,
तुम वहां अपने आप में, मैं यहां अपने ही संग।
तुमने कहां कभी वह चिलमन गिराई थी?
कभी देखा ना था मुलाकात का कोई रंग।
हम तो मरने के लिए भी बैठे थे तैयार,
एक बार मिलने की हसरत गर हो जाती पूरी।
सांस फूल जाती, चड़ जाता तुम्हारा ही बुखार,
वेंटिलेटर पे हमें रख लेना हो जाता ज़रूरी।
चलो किस्मत वाले हैं वह जिनके हो तुम करीब,
हमसे तो रखती हो गजब का सोशल डिस्टेंस।
हम भी उन लोगों की तरह हैं गरीब,
खुशी का जिनकी ज़िन्दगी में नहीं कोई इंस्टेंस।