मेरे एक क़दीम दोस्त हैं,
शायरी में है उनका कमाल,
सोच रहे हैं क्यों न खोल दें,
शायरी और नज़्मों का इक mall।
एक तरफ तो सब्जियां मिलें,
पात पात और डाल डाल।
दूसरी तरफ हो शायरी,
हरी पीली भूरी और लाल।
हर ग्रुप में हर चीज़ मिले,
यह है उनका तेज़ ख्याल।
शायरी का हो बोल बाला,
शायरी की हो हर जगह धमाल।
कितने और ग्रुप में डालोगे,
यह न पूछो उनसे सवाल।
शायरी उनके लिए है जैसे,
नेकी कर दरिया में डाल।
बच्चे उनके उस स्कूल में पढ़ते,
सारे मज़मून का है स्टाल।
एक ही क्लास में दस उस्ताद,
बच्चों को लेते हैं संभाल।
घर के सारे कमरे भी common,
न कोई किचन, बैडरूम और हॉल।
Common पकवान बनता है,
खिचड़ी होती माला माल।
फिश मार्किट में कपड़े सिलवाते,
जूते, पतलून, टाई और रुमाल।
वेजीटेरियन खाने में भी,
मिलते चिकन और मीट हलाल।
ट्रैन में टिकट के बारे,
TTE करता जब सवाल,
“कहीं भी कभी भी उतरेंगे,
मुंबई, रूड़की या West Bengal”।
“जिस ग्रुप में शायरी न हो,
उस ग्रुप की बदल डालो चाल।
दुनिया के हर इक कोने में,
मेरी शायरी का फैला हो जाल।
मंदिर, मस्जिद, चर्च में भी,
मेरा ही पूछें दिन रात हाल।
Parliament में zero Hour पे,
मेरी poetry पर उठें सवाल।”
“YKDN पर ban लगाया,
नादान, तुम्हारी यह मज़ाल?
दोस्त ने होते तो मैं यह कहता:
तुम्हारे हो जाए फिटेहाल।
और तुम यकायक बन जाओ,
दुनिया के सबसे बड़े कंगाल।
लानत है तुम्हारे ban पर,
मेरा न बांका होगा बाल”।